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CBI जांच: राज्य सरकार की सिफारिश से होती है (जैसे यहाँ धामी सरकार ने की), या फिर कोर्ट के निर्देश से होती है,या केंद्र खुद संज्ञान ले। सिर्फ बयान देना CBI जांच की वजह नहीं बन सकता

CBI जांच की मांग किसने की.? बेरोज़गार संगठन के बैनर तले युवाओं ने। आंदोलन किसने किया.? उन्हीं बेरोजगार युवाओं ने। आठ दिन तक धूप, बारिश और त्योहारी सीजन की गर्मी में सड़कों पर कौन डटा रहा.? फिर से वही बेरोजगार युवा। लेकिन जश्न किसके घर पर मनाया गया..? पूर्व मुख्यमंत्री
त्रिवेन्द सिंह रावत के
आज परेड ग्राउंड में युवाओं की आवज़ सुनने खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहुँचे और वहीं सीबीआई ( CBI ) जांच की संस्तुति कर दी। यह निर्णय सरकार का था, और मांग आंदोलनरत छात्रों की।
मगर सोशल में वीडियो आये कि पूर्व CM त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर कार्यकर्ता जुटे, आतिशबाजी हुई, मिठाइयाँ बंटी पूर्व CM को भी खिलाई गई। जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोग फट पड़े—“बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।” और न जाने लोग सवाल उठाते हुए क्या-क्या लिखने लगे।
असल सवाल यही है—क्या केवल बयान देने से CBI जांच हो जाती है ? अगर ऐसा होता तो NH-74 मुआवज़ा घोटाले और छात्रवृत्ति घोटाले पर अब तक सीबीआई की छानबीन क्यों नहीं हुई.? क्या वहाँ युवाओं ने नारा नहीं लगाया था.?
सच यही है कि जीत बेरोजगार युवाओं की है। उनका संघर्ष ही असली वजह,और इस प्रकार पर मुख्यमंत्री की गंभीरता.. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहल की, लेकिन श्रेय किसी और के दरवाज़े पर पटाखे बजाकर ,और मिठाई खिलाकर क्यों बाँटा जा रहा है.?
युवाओं का खून-पसीना किसी के घर की मिठाई और शोरगुल से छोटा नहीं किया जा सकता। यह उनकी जीत है, उनकी लड़ाई है और उनका हक़ है। बाकी लोग चाहे जितना ढोल पीट लें, इतिहास यही लिखेगा कि सड़कों पर बैठे बेरोज़गार छात्रों ने अपने हक़ की लड़ाई जीती। श्रेय चुराने की राजनीति हमेशा बेनकाब होती है और इस बार भी हो रही है